मंगलवार, 26 जून 2007

तेरे आँसू.....


"तेरी आँखों में
मोती थे छोटे छोटे
या थे तेरे आँसू
जो तेरे गालो से नीचे उतरकर
धीरे धीरे टपक रहे थे

लेकिन मुझे तो ऐसा लगा
जैसे किसी फूल पर
रात भर अटकी शबनम के
लरजते, तड़पते चंद क़तरे
सुबह के सूरज की
तपिश मे गरम होकर
सहमे-सहमें और डरे से
ज़मीं पर गिर रहे थे॰॰॰॰॰"

रविवार, 24 जून 2007

"रिमझिम बारिश गाँव में....."


कुछ दिनो पहले मानसून पूर्व की पहली बारिश के बाद गाँव में अपने खेतों की ओर जाना हुआ ।महसूस हुआ कि शहर और गाँव में बारिश की रुत कुछ भिन्न होती है .

कविता रात को ही लिखी है और किसी भी प्रकार की काँट-छाँट से मुक्त है। )


सागर से आँधी उठी
थम गयी आकर गाँव में ,
रिमझिम बारिश आ गई
बाँधें घुँघरू पाँव में ।

झोंके आगे निकल गये
पीछे रह गई रेत,
मौसम ने जब सरगम गाई
लहरा उठे सब खेत ।

धरती कहती फसलों से
कोई बात निराली,
समझकर मिट्टी की भाषा
झूम उठी हरियाली ।

जिन फूलों की हमने
चर्चा सुनी हर मुँह,
गिरते-गिरते छोड गये
भीनी-भीनी खुशबू ।

पुराने पेड टूट रहे
यह कैसी रीत चली,
ऐसी रुत मे क्या बोलें
यारों चुप्पी भली ।

आँधियां आती जाती है
बदल बदल कर भेस,
फिर भी जीवित रहता है
मेरा यह गाँव, यह देस ।

शनिवार, 16 जून 2007


"साथ रहते हो तो कभी-कभी,
छोटी सी बात पर बिगड़ जाते हो।
पत्थर सा मुंह बना,
सूखी ज़मीन की तरह अकड़ जाते हो।
अजीब है तेरे अन्दाज़ "मनु",
पिघल जाते हो मोम की तरह
दूर जाकर जुदा होते ही जब,
विरह की आग मे सड़ जाते हो ।
"

ख़त.......




"फट रहे है पुराने कागज़,
स्याही भी उडती जा रही,
हो गये सब शब्द धुँधले,

समय की धूल अक्षर खा रही ।
इस बात का मुझे ग़म नही,

कि इन्हे मै पढ़ नही सकता,
फिर भी सहेज रखा है इन्हे,

क्योकि,
तेरे हाथों की खुशबू,

आज भी हर ख़त से आ रही॰॰॰॰।"

रविवार, 10 जून 2007


"मेरी सारी कल्पनायें उस समय ध्वँस हुई जाती है,
जब ज़माने की आंधियाँ मेरा आशियां मिटा जाती है ।
पानी की लहरों सा उभरा था प्यार तेरा मेरा,
हादसा ये होता है, कि हरदम दूरियाँ बढती जाती है ।"

सिर्फ आँसू है॰॰॰॰॰




"न जी करता है मुस्कुराने को,
न लब करते है थरथराने को ।
चोट कुछ ऍसी दी है ज़माने ने कि,
आग लगाने का जी करता है ज़माने को।
ठोकरो पर ज़िन्दगी गुज़रती रही,
अपना साथी बना लिया, मैखाने को।
दर्द ही दर्द मेरी बोतल मे है,
क्यूँ मै दोष दूँ किसी पैमाने को।
रास्ते खो गये, मंज़िलें दूर है,
सिर्फ आँसू है आज बरसाने को ।
जो भी आये थे, मेरे हमदर्द बनके,
सारे धोखे थे, प्यार था दिखाने को ।
ये शहर है सारा अजनबियों का,
कौन है यहाँ अब आज़माने को ।
जलता बुझता रहा, बुझता जलता रहा,
कौन आया लगी दिल की बुझाने को ।
चल दे मनु कहीं बेगाना बनके,
आब तेरी नही यहाँ दिखाने को ।"

मुन्तज़िर है तुम्हारी राहों में,
बसे हो जबसे इन निगाहों में ।
कहीं भी रहो, कहीं भी जाओ तुम,

दिखेगें तुमको अश्क और आहों में ।
ज़ज़्बाते-उल्फत क्या बतायें
तेरी याद बितायेंगें आहों में॰॰॰॰।

चन्द लम्हात् मिले है आ मुझे प्यार कर ले,
युँ तो उजडा गुलिस्ताँ हूँ, थोडी बहार कर ले ।
कब से पतझड की सूखी शाख सा पडा हूँ ,
आ अपने कमल नयनों से मेरा श्रृंगार कर ले ।

मैं रातों के अँधेरों में खोया सितारा हूँ,
हज़ारों लाखों मे मैं भी ऍक आवारा हूँ ।
लाख कह दे ज़माना मुझे, तेरा पागल,
तुम ठुकराऒगे तो भी मैं तुम्हारा हूँ ।

तडप रहा है दिल जाने क्यो अजनबी के लिये,
गम और ले लिया है, इसने ज़िन्दगी के लिये ।
मिले थे खूब खुदा मुझको राह-ऍ-हयात में,
"राहगीर" प्यासा है क्यों किसी की बन्दगी के लिये ।

दिल जल रहा है, बस धुआँ नही है,
इस दर्द का हमदर्द यहाँ नही है .
मोम की तरह पिघल रहा हूँ दोस्त,
कुछ समय मे तुम कहोगे, मेरा....
................... निशाँ नही है.........



कभी- कभी मै खुद नही समझ पाता कि मै कौन हूँ, क्या हूँ ।
गीली मिट्टी में घरौंदा बनाने मे उलझा,


मिट्टी पर कदमों के निशान छोडकर,
तुम्हारे बहुत दूर निकल जाने पर,
अपना मन सँभाले,
उन कदमों पर कदम धरता,
हाँफता- दौडता तुम्हे ढूँढता शायद मैं ही था ।
या तुम्हारी स्मृति मे खोया मै ही हूँ।
दरवाज़े की ऒट मे खडा उदास, निराश,


निर्निमेष पलकों से झाँकता भी मैं ही था॰॰॰॰॰॰