सोमवार, 2 जुलाई 2007

मूमल॰॰॰॰॰॰॰॰ एक अहसास




मेरी सबसे अच्छी दोस्त, जिसने मुझे सबसे पहले कलम पकड़कर "लिखना" सिखाया, आज उसकी सातवीं बरसी है ।
आज ही के दिन वर्ष २००० मे एक सड़क दुर्घटना के बाद जोधपुर में उसका निधन हो गया। जब वो हम सभी को छोड़कर जा रही थी, तब उसका हाथ मेरे हाथ मे था । मेरी मूमल॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰


वो जा रही थी,
पर कोई भी ये मानने को तैयार ना था
उसकी साँसों की डोर टूट सी रही थी
उसका अंत सभी को साक्षात् दिख रहा था
पर फिर भी सभी लोग उसके लिये विधि से लड़ रहे थे
जान बचाने वाले जवाब दे चुके थे
पर फिर भी आस की एक किरण बाकी थी
हम उसे बचाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे
उसका जाना तय था, पर हमें ये मंज़ूर न था
हम उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते थे
हम उसकी ज़िन्दगी उस उपर वाले से छीन लेना चाहते थे
और जब हमारी ये कोशिश
हमें नाकामयाब होती दिखाई दी
तो हम उसके लिये भीख माँगने लगे थे
जिसने कभी भूलकर भी भगवान का नाम न लिया था
वो भी सारी रंजिशे भूलकर बस राम राम रट रहा था
पर आज शायद आज वहाँ रहम का नामो-निशां न रह गया था
और आखिर वो घडी आ ही गई
उसके जीवन की डोर हमारे हाथों से फिसलती प्रतीत हुई
और अंततः छूट गई
वो आँसुओं का सैलाब जो हम सब की आँखों मे दबा था
यकायक फूट पड़ा
वो जा चुकी थी, हम सबको छोड़कर, इस जहां को छोड़
अमनो-चैन की उस दूसरी दुनिया में
उसके मुख पर वो चिर-परिचित मुस्कान थी
जैसे वो हमारे रोने का परिहास उड़ा रही हो
कितने इत्मीनान से उतार फेंका था, उसने ज़िन्दगी का चोला
और मौत का जामा पहन लिया था
वह पीछे छोड़ गई थी,
एक अजीब सा खालीपन,
"मूमल" एक रिक्तता,
एक सन्नाटा............"

(सात वर्ष पूर्व लिखी श्रद्दान्जलि॰॰॰॰)

14 टिप्‍पणियां:

ख्वाब है अफसाने हक़ीक़त के ने कहा…

रूलाने का इरादा है क्या? इस एहसास मे पूरी तरह से डूब गया.... शब्द नही है बयान करने के लिये...

रंजू भाटिया ने कहा…

very touching ...no words .. jaan ke dukh hua ..ek bhavpuran rachana hai jo dil ko chu gayi

विश्व दीपक ने कहा…

रूला हीं दोगे भाई। मैं पूरी तरह से उस अहसास में चला गया था। बहुत हीं दर्द हुआ। और कुछ न कह पाऊँगा, गला रूंध सा गया है।

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' ने कहा…

आर्य,
कुछ दिनों से मैं वास्तव में किसी को टिप्पणी नहीं कर पा रहा था, पर आज तुमने बाँध तोड दिया। इस कविता को पढकर (माफ करना दोस्त क्योंकि यह कविता नहीं उससे ऊपर की बात है), आँख, गला रुँधा ही हुआ है, शायद विवेक शून्यता भी हो रही है।
तुमसे फोन पर बात करूँगा।
तुम्हारा 'खबरी'

सुनीता शानू ने कहा…

सचमुच क्या वो चली गई...मुझे लगता है नही आज भी वो तुम्हारे अंदर जिन्दा है काव्य बन कर जो तुम्हारी प्रेरणा है वो कैसे जा सकती है...मनु तुम्हे हर पल जिसका अह्सास है वो तुम्हारी लेखनी में मौजुद है...
बहुत अच्छा लगा पढकर बस आंसू जो आये थम नही पाये...कितना दर्द था हर पक्तिं मे सिमटा हुआ...

शानू

Unknown ने कहा…

ये क्या लिख दिया आपने भैया,
ऐसा लगा जैसे दिल ही खोल कर रख दिया है सामने।
एक भी पाठक, टिप्पणीकार एसा न होगा, जो इसे पढकर मन के आँसू रोया न होगा ।
मूमल को श्रध्दासुमन पेश करता हूँ, जिसके सफल प्रयासों ने एक आम इंसान को "आर्यमनु" बना दिया ।

Unknown ने कहा…

मुझे आज अपने मनु होने कि खुशि है नाम को सार्थक कर दिया आपने
आप बहोत अच्छा लिखते हैबगवान करे, आप हमेशा यु ही लिखते रहे ।
मनु सिह

बेनामी ने कहा…

मित्र आर्य,

यादों के कुछ पल ताउम्र रूलाने के लिये काफि होते हैं, मगर जीवन की सार्थकता उन पलों पर विजय पाते हुए दर्द को पी लेने में ही होती है... कुछ बातें इंसान के वश में नहीं होती, तुम भी इस बात को समझते ही हो, है ना?

तुम्हारे दुख में हम सब भी शामिल है मित्र, खुद को कभी अकेला महसूस मत करना|

Mohinder56 ने कहा…

बहुत ही मार्मिक घटना पर संवेदनशील रचना है मनु जी.. आंखो में आंसू आ गये.. हम समझ सकते हैं कि उस समय आप पर क्या बीती होगी.

Admin ने कहा…

आदरणीय मनु जी चॊट आपके दिल कॊ लगी और आखें मेरी रॊई। ना जाने क्यॊं एसा लगा कि घटना मेरे दिल के बहुत करीब है।

आपकी कलम कॊ प्रणाम।

Nikhil ने कहा…

aryamanuji,
aap to badi cheez nikle bhai..
lage raho...ab aapse bhi mulaakat hoti rahegi......
waise rachna kaafi acchi hai, marmsparshi hai.......

nikhil anand giri
9868062333

ghughutibasuti ने कहा…

एक भावपूर्ण सुन्दर शैली में लिखी कविता ।
आपके मेरे नाम को लेकर किये प्रश्न का उत्तर http://ghughutibasuti.blogspot.com/2007_02_01_archive.html में पाया जा सकता है ।
घुघूती बासूती

Unknown ने कहा…

shayad main ispe comment karne layak hi nahi raha!!
waise i must say this is the real 'shraddhanjali' any body can pay!!

Yash Sharma ने कहा…

Best lines i had ever read in my life ,,,,