शनिवार, 14 जुलाई 2007

यहाँ अँधेरा है ॰॰॰


"अपनी मुस्कुराहटों की रोशनी फैला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
हँसती हुई आँखों के दो चिराग जला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰

बहुत दिनों से इस कमरे में
अमावस का पहरा है
अपने चमकते चेहरे से इसे जगमगा दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰

खिलखिलाते हो, तो होंठों से
फूटती है फूलझड़ियाँ,
अपने सुर्ख होंठों के दो फूल खिला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰

कहाँ हो, किधर हो, ढूँढता फिरता हूं,
कब से तुम्हे
ज़रा अपनी पद-चाप सुना दो
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰

बेरंग और बुझा सा खो गया हूँ,
गहरे तमस में
आज दीवाली का कोई गीत गुनगुना दो
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰

हँसती हुई आंखों के
दो चिराग जला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰।"

7 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अतिउत्तम, अच्छी लगी.
जब भी नयी कविता ब्लोग पर आये, तो आगे रहकर बता दें.
आपकी कविता से ही उजाला होगा, यहां अँधेरा है.

रंजू भाटिया ने कहा…

bahut hi sundar rachna hai ,

कहाँ हो, किधर हो, ढूँढता फिरता हूं,
कब से तुम्हे
ज़रा अपनी पद-चाप सुना दो
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰

apne dil ke bahut kareeb lagi ...

श्रवण सिंह ने कहा…

मनु भाई,

काव्य है,गेय है; सो भावों की बात करना तो व्यर्थ और बेमानी सा ही लगता है। पर शिल्प के दृष्टिकोण से मुझे थोड़ी लचर सी लगी;और कसा जाता, तो मनु वाला मजा आ जाता। तुम्हे बहुत आगे जाना है,मेरी शुभकामना साथ है तुम्हारे। दोस्त, थोड़ा निष्पक्ष एवं निर्विकल्प होकर अपनी इस रचना को निहारो, समालोचना के तथ्य भी मिल जायेंगे। दिक्कत यह है कि भाव जहाँ से आते हैं, वहाँ किसी साधन की जरूरत नही पड़ती... भाव ही निमित्त होते हैं और वही साधन भी;साध्य भी अंततः वही होते हैं। पर हमे भावो को व्यक्त करने के लिये शब्दों के पुष्पकविमान का सहारा लेना पड़ता है,जिसमे कुछ अभियांत्रिकी के सिद्धांत और स्थापित मान्यताओं को तरजीह देना अपरिहार्य हो जाता है। शब्दो का फेरबदल इसी रचना को श्रेष्ठ बना देगा।
उम्मीद है, परिमार्जन के इस विनती को आप अन्यथा ना लेंगे।

सस्नेह,
श्रवण

ख्वाब है अफसाने हक़ीक़त के ने कहा…

manu bhai...vaastav mei bahut khoobsurat likhte ho....dil ko chhu jati hain tumhari rachnayen...bahut khoob..aise hi achha achha likhte raho

बेनामी ने कहा…

a very heart touchin "kavita"
bahut hi khubsurti se kisi k intzar ko zahir kiya hai.
if u r really w8in for someone hope u get her

Sambhav ने कहा…

अन्धेरा तो हमारे दिल में भी था
लेकिन आपने दिल में दिया जला दिया ...........
बहुत सुन्दर रचना.........

गौरव कुमार *विंकल* ने कहा…

BHUT KHOOB DIL KO CHHOO GYI....