रविवार, 19 अगस्त 2007

दर्द अपने अपने......


जीवन
संग्राम में जूझते,
संघर्ष करते लोग
कभी रोते कभी हँसते
कभी मर मर जीते लोग ।

कभी सीनों में धड़कती
उम्मीदों की हलचल,
कभी बनते कभी टूटते
दिलों में ताजमहल ।

पत्थर जैसी परिस्थितियों के
बनते रहे पहाड़
भविष्य उलझा पड़ा है जैसे
काँटे- काँटे झाड़ ।

चेहरे पर अंकित अब
पीड़ा की अमिट प्रथा
हर भाषा में लिखी हुई
यातनाओं की कथा ।

जोश उबाल और आक्रोश
सीने में पलते हर दम
चुप चुप ह्रदय में उतरते
सीढी सीढी ग़म ।

दर्द की सूली पर टँगा
आज किसान औ' मज़दूर
है सबके हिस्से आ रहे
ज़ख्म और ऩासूर ।

महबूबा से बिछुड़ा प्रेमी
खड़ा है शाम ढ़ले
ग़मों का स़हरा बाँधकर
विरह की आग जले ।

कहीं निःसहाय विधवा सी
ठंडी ठंडी आह
कहीं बवंडर से घिरी सुहागिन
ढूँढे अपनी राह ।

आँगन में बैठी माँ बेचारी
दुःख से घिरी हर सू
भूख से बच्चे रो रहे
क़तरा क़तरा आँसू ।

बोझल बोझल है ज़िन्दगी
टुकड़े टुकड़े सपने
यहाँ तो बस पी रहे सभी
केवल दर्द अपने अपने ।।"

9 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अति सुन्दर रचना है मनु जी ।
आपको साधुवाद जो आपने प्रेम से परे राष्ट्र के दर्द को भी समझा ।
अब तो हर इतवार आपकी रचनाओं का इंतज़ार रहता है ।
विशाल

गौरव सोलंकी ने कहा…

आपने अपनी शैली से अलग हटकर ही लिखा है।
सुन्दर रचना है और लगभग हर तरह के दर्द को समेटने में आप सफल भी रहे हैं।

जीवन संग्राम में जूझते,
संघर्ष करते लोग
कभी रोते कभी हँसते
कभी मर मर जीते लोग ।

कहीं निःसहाय विधवा सी
ठंडी ठंडी आह
कहीं बवंडर से घिरी सुहागिन
ढूँढे अपनी राह ।
आँगन में बैठी माँ बेचारी
दुःख से घिरी हर सू
भूख से बच्चे रो रहे
क़तरा क़तरा आँसू ।
बोझल बोझल है ज़िन्दगी
टुकड़े टुकड़े सपने
यहाँ तो बस पी रहे सभी
केवल दर्द अपने अपने

आपसे आशाएँ और भी बढ़ गई हैं।
बधाई।

श्रवण सिंह ने कहा…

मनु जी,

एक बेहतर रचना.... आपके दिल का दर्द व
संवेदना पूरी तरह से खुल कर आ गए हैं.... कमतर शब्दो मे बहुत ही अच्छी प्रस्तुति....
दर्द दिल को छू गया....

श्रवण

बेनामी ने कहा…

DIPESH SAID..............
JO HAMAARE LIYE JIVAN KI PRERNA DETE HAIN,
UNSE HUM KHAFA KAISE HO SAKTE HAIN,
BALKI HAMARA MASTAK GARV SE UNCHA HOTA HAI,
KI HAMAARE UPAR BHI KISI GURU KA HAATH HAI....SIR ITS ONLY 4 U..............

dipesh ने कहा…

MANU SIR ONE MORE COMMENT 4 U.............................
TERI ULFAT KO KABHI NAAKAM HONE NAHI DENGE

TERI CHAHAT KO KABHI BADNAM HONE NAHI DEKNGE



MERI ZINDAGI MEIN KABHI SURAJ NIKLE YA NA NIKLE

PAR TERI ZINDAGI MEIN KABHI SHAAM HONE NAHI DENGE ....................HINDI NAHI ATI HAI ISLIYE ENGLISH MAI SIRF APKE LIYE...................

Sambhav ने कहा…

Bhaut Sundr Manu Ji ..........

Bhaut Sundr Abhivakti Ki Hai Aapne..........

Likhte..Rahiye...

"Aap Samundra Hai, Aur Samundra Ki Tarehe Bahe Raahe Hai.
Rook Gaye to Jhil Ban Jaoyege.."

Manu Ji Likhte Raheye...

Ghanshyam Bhati ने कहा…

very very sweet

Sindhoora ने कहा…

hello,
aapki kavita main woh dard hai jise na keval aapne mehsoos kiya hai, balki jo bhi padta hai woh bhi mehsoos karta hai.
Meri shubhkamanaayein hain aapke saath, aap aur likhtain rahain and aur tarakki karein.

sindhoora.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com