शनिवार, 28 जुलाई 2007

जब नयी राह चलने लगे ......


जीवन के इक मोड़ पर,
जब नयी राह चलने लगे
तेरी आँखों के चिराग
इस दिल मे जलने लगे ।


दर्द जो तूने दिया,
उसके लिये तेरा शुक्रिया
अब तो अपने जिस्म में
कई रंग घुलने लगे ।


मुरझा रहे इस पेड़ को
तूने दिया जो गंगाजल,
अब तो अपने चारों तरफ
फूल ही फूल खिलने लगे ।


बारिशों के मौसम में
तुम भी बरसे इस तरह
पुराने ज़ख्मों के दाग सब
अब धीरे धीरे धुलने लगे .

7 टिप्‍पणियां:

गौरव सोलंकी ने कहा…

आप आशाएँ जगाते हैं अपनी कविता से।
बारिशों के मौसम में
तुम भी बरसे इस तरह
पुराने ज़ख्मों के दाग सब
अब धीरे धीरे धुलने लगे
छोटी सी कविता बहुत असर रखती है।

ख्वाब है अफसाने हक़ीक़त के ने कहा…

bahut khoob...manu...bahut achhi rachna hai...aise hi likhte raho...tumhari ye chhoti chhoti rachnaayen dil ko andar tak chhu jaati hain....

shaveta ने कहा…

bahut ache arya manu ji

रंजू भाटिया ने कहा…

bahut hi sundar likhi hai aapne yah rachana..

दर्द जो तूने दिया,
उसके लिये तेरा शुक्रिया
अब तो अपने जिस्म में
कई रंग घुलने लगे ।

mujhe yah lines bahut bahut acchi lagi ...

Unknown ने कहा…

itni sunder kavita padhane ke liye thanx.
aapne bahut accha likha hai. kuch lines to sidhe dil me utar rahi thi.

बेनामी ने कहा…

jis tarah se aapne "dard" ko jatatya, dil ko chu gaya

Manav Mehta 'मन' ने कहा…

बारिशों के मौसम में
तुम भी बरसे इस तरह
पुराने ज़ख्मों के दाग सब
अब धीरे धीरे धुलने लगे .

are janab ye kya likh dala...likha hai ya hame katal kiya hai, amazing yaar, bahut badiya lga ye sher........