शनिवार, 4 अगस्त 2007

वह, मन सताये.........



अन्धेरी रात में
सफेद लिबास में
दुधिया रोशनी फैलाती
वातावरण मधुर बनाती
वह, मन सताये,
मुझको सताये ।


अधरों से अपने रस बरसाती
गालों की गुलाबी दर्शाती
झील सी नीली आँखें टमकाती
काली घटाओं सी लट लटकाती
वह, मन सताये,
मुझको सताये ।


कोमल अपने कदम बढाती
छम छम पायल बजाती
पतली अपनी कमर लचकाती
नख-शिख सौन्दर्य को दर्शाती
वह, मन सताये,
मुझको सताये ।


कोयल सी आवाज़ में गाती
प्यारी सी मुस्कान फैलाती
वातावरण में झंकार बजाती
आँखों से ओझल हो जाती
वह, मन सताये,
मुझको सताये ।

10 टिप्‍पणियां:

गौरव सोलंकी ने कहा…

यह रचना बरबस ही गुनगुनाने को मजबूर करती है।
बधाई।

अशोक लालवानी ने कहा…

ज़िदगी की पहचान कविता है।

खुबसुरत रचना है आयॆ जी

लिखते रहिये

zindagi ki parchae hai kavita...

khubsoorat rachna hai aayra ji...

likhte rhiye...

Alok Shankar ने कहा…

Achchaa likha hai
saudarya ka achcha varnan hai
likhte rahiye

Unknown ने कहा…

अच्छी कविता है ।
आप की दूसरी कविताओं की तरह ये भी बरबस ही ध्यान आकर्षित करती है ।
सौन्दर्य का बेहतर प्रस्तुतिकरण है, जो मन को गुदगुदाता है, रोमांचित करता है ।
इस रोमांचिकरण के लिये आपको धन्यवाद देता हूँ ।

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर!

बधाई!!!

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत ही सुन्दर!बधाई!!!

Unknown ने कहा…

acchi likhi hai

विश्व दीपक ने कहा…

वह, मन सताये,
मुझको सताये ।

बहुत खूब । क्षमा कीजियेगा जो देर से आ पाया। लेकिन आकर तर गया। मजा आ गया।
आपकी अगली रचना के इंतजार में-
विश्व दीपक 'तन्हा'

ख्वाब है अफसाने हक़ीक़त के ने कहा…

bahut khoob manu..sundar rachna..

Unknown ने कहा…

sirjeee!!maza aa gaya hai!!
it waz marvellous!!