रविवार, 10 जून 2007


चन्द लम्हात् मिले है आ मुझे प्यार कर ले,
युँ तो उजडा गुलिस्ताँ हूँ, थोडी बहार कर ले ।
कब से पतझड की सूखी शाख सा पडा हूँ ,
आ अपने कमल नयनों से मेरा श्रृंगार कर ले ।

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