शनिवार, 16 जून 2007

ख़त.......




"फट रहे है पुराने कागज़,
स्याही भी उडती जा रही,
हो गये सब शब्द धुँधले,

समय की धूल अक्षर खा रही ।
इस बात का मुझे ग़म नही,

कि इन्हे मै पढ़ नही सकता,
फिर भी सहेज रखा है इन्हे,

क्योकि,
तेरे हाथों की खुशबू,

आज भी हर ख़त से आ रही॰॰॰॰।"

5 टिप्‍पणियां:

शैलेश भारतवासी ने कहा…

प्रेम के छोटे-छोटे मगर गहरे भाव लिखना कोई आपसे सीखे। मैं भी कुछ ऐसा ही लिखने की कोशिश करूँगा।

Praveen ने कहा…

abe kitni tarif karun teri ..
teri har kavita me doobne ko dil chah raha hai..
tu bahut bada kavi hai yaar ..
really gr8..

सुनीता शानू ने कहा…

:)...

सुनीता शानू ने कहा…

क्या लिखूं मनु...अच्छा लिखा है किसी से प्यार भी करते हो क्या...अपनी दीदी को तो बतादो...

शानू

azhar ने कहा…

QHOOBSURAT EHSAAS , ACHCHA LAGA JAN KAR K MANU IN JAZBO SE BHI AASHNA HE'N