शनिवार, 16 जून 2007


"साथ रहते हो तो कभी-कभी,
छोटी सी बात पर बिगड़ जाते हो।
पत्थर सा मुंह बना,
सूखी ज़मीन की तरह अकड़ जाते हो।
अजीब है तेरे अन्दाज़ "मनु",
पिघल जाते हो मोम की तरह
दूर जाकर जुदा होते ही जब,
विरह की आग मे सड़ जाते हो ।
"

7 टिप्‍पणियां:

शैलेश भारतवासी ने कहा…

विरह की आग होती ही ऐसी है।

Praveen ने कहा…

bhai sach bol ..tune hi likha hai na ye ..???

main to dharashayi ho gaya ..
god level hai ...
gr8 , awesome...
main comment likhne par mazbooor hoon dost...
waah waah waah waah ..subhan allah ..

shaveta ने कहा…
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shaveta ने कहा…
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shaveta ने कहा…
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shaveta ने कहा…

very nice poem...

सुनीता शानू ने कहा…

क्या बात है मनु अति सुंदर भाव और सत्य भी है...कम शब्दो में बहुत सही कहा...
साथ रहते हो तो कभी-कभी,
छोटी सी बात पर बिगड़ जाते हो।
दूर जाकर जुदा होते ही जब,
विरह की आग मे सड़ जाते हो

ये पक्तिंयाँ विशेष पसंद आई...

सुनीता(शानू)